आर्थिक मंदी, आखिर लोकतंत्र है, सबकी सुनिये मोदीजी
सतीश जोशी
मोदी सरकार की अर्थव्यवस्था को विफल साबित करने के लिए इन दिनों कांग्रेस नेता मनमोहन सिंह लगातार टीवी पर आ रहे हैं। आमतौर पर मनमोहन सिंह एक ठेठ कांग्रेस प्रवक्ता की तरह मोदी सरकार की आलोचना नहीं करते, लेकिन कांग्रेस चाहती है कि मनमोहन सिंह द्वारा आलोचना कराकर मोदी सरकार की विफलता को रेखांकित किया जाये। हालांकि, भाजपा ने देश की आर्थिक हालत बेहद चिंताजनक होने के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है, लेकिन मनमोहन सिंह ने जो बातें कही हैं, उन पर संवाद की जरूरत है। गौरतलब है कि कुछ समय पहले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश की गिरती अर्थव्यवस्था पर चिंता जताई थी। उन्होंने कहा था कि पिछली तिमाही में जीडीपी का 5 फीसदी पर आना दिखाता है कि अर्थव्यवस्था एक गहरी मंदी की ओर जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत के पास तेजी से विकास दर की संभावना है, लेकिन मोदी सरकार के कुप्रबंधन की वजह से मंदी आयी है।
मनमोहन सिंह के मुताबिक मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में ग्रोथ रेट 0.6 फीसदी पर लड़खड़ा रही है। मनमोहन सिंह के बयान से साफ जाहिर होता है कि हमारी अर्थव्यवस्था अभी तक नोटबंदी और हड़बड़ी में लागू किए गए जीएसटी से उबर नहीं पायी है। मनमोहन सिंह ने कहा कि भारत इस लगातार मंदी को झेल नहीं सकता, इसलिए हम सरकार से गुजारिश करते हैं कि अपनी राजनीतिक बदले के एजेंडे को किनारे रखे। इसके जवाब में भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि वह (मनमोहन सिंह) थे तो अर्थशास्त्री, लेकिन जिन लोगों ने पर्दे के पीछे से उन्हें निर्देशित किया, उससे भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद को बढ़ावा मिला और अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा।
राजनीतिक बहस तो अपनी जगह है, लेकिन मनमोहन सिंह की बात को सुना जाना चाहिए और जीएसटी व नोटबंदी से जुड़ी जिन वजहों से अर्थव्यवस्था बाधित हुई है, उन्हें दूर किया जाना चाहिए। सरकार खुद कहीं न कहीं यह मानती है कि जीएसटी की व्यवस्था में बेहतरी की गुंजाइश है। और यह बात मनमोहन सिंह ने ही नहीं, रिजर्व बैंक ने भी रेखांकित की है कि अर्थव्यवस्था में मांग का संकट है, यानी मांग पैदा नहीं हो रही है। रिजर्व बैंक के बाद सरकार के अपने आंकड़े बताते हैं कि निजी उपभोग में बढ़ोतरी की रफ्तार बहुत कम है। यानी लोग बहुत संभल-संभल कर खर्च कर रहे हैं या खर्च करने से बच रहे हैं।
लोकतंत्र संवाद से चलता है, आर्थिक मसलों पर चर्चा के लिए एक सर्वदलीय बैठक बुलायी जा सकती है। तमाम सांसद और कार्यकर्ता मांग करते रहे हैं कि खेती किसानी की अर्थव्यवस्था पर विमर्श के लिए संसद का एक विशेष सत्र बुलाया जाये। यानी एक मसले पर तमाम दृष्टिकोण सामने आ जाएं तो हर्ज नहीं है। यह सच है कि लोकतंत्र में फैसले बहुमत के आधार पर ही होते हैं, लेकिन अल्पमत के पास भी अपनी बात कहने का हक तो है ही। खासतौर पर जब मनमोहन सिंह जैसे नेता, जिन्होंने रिजर्व बैंक के गवर्नर पद समेत वित्त मंत्रालय में भी तमाम जिम्मेदारियां संभाली हों तो उनकी बात बहुत ध्यान से सुनी जानी चाहिए।