स्वयंभू देवता ही सत्ता खोने का कारण बनते हैं
- सतीश जोशी
हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम उन पार्टियों के लिए सबक हैं, जो लंबे समय तक या भारी बहुमत से सत्ता में आते हैं और यह मानकर चलते हैं कि उनके कामकाज पर जनता उनको दोबारा सत्ता में ले आएगी। हरियाणा में भाजपा फिर सत्ता में है और महाराष्ट्र में वह सबसे बड़े दल के रूप में जीतकर आई है। इसके पहले यदि मध्यप्रदेश और गुजरात का उदाहरण लें तो यहां भी सत्ताधारी दल को अपने अतिआत्मविश्वास के खिलाफ जनता का जनादेश मिला है। पर यह जनादेश जो कहता है उसे पढऩे की जरूरत है। अतीत में कांग्रेस के पतन का कारण भी बेलगाम मंत्री रहे हैं। महाराष्ट्र में सात मंत्री चुनाव हार गए। मध्यप्रदेश में 13 मंत्रियों ने चुनाव में हार का मुंह देखा और आठ सीट बहुमत से कम होने से भाजपा को सत्ता खोनी पड़ी। राजस्थान-छत्तीसगढ़ में तो मंत्रियों की कहानी अलग ही है। थोक में मंत्री हारे। हरियाणा में भी मंत्रियों के हारने से भाजपा अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाई और उसे बैसाखी के सहारे सरकार चलानी पड़ रही है। महाराष्ट्र में यदि उसके मंत्रियों ने अच्छा प्रदर्शन किया होता तो कहानी आज कुछ और होती। सत्ता शिवसेना के मातोश्री में दम घुटने की कगार पर है और उसके नेता रोज भाजपा के साथ दो-दो हाथ कर रहे हैं। बेलगाम मंत्रियों और उनके बड़बोलेपन तथा प्रशासनिक क्षमता का अभाव जनता में उनको अलोकप्रिय बनाता है, वहीं सत्ता की अंधी दौड़ में नीति-नियंता यह समझ ही नहीं पाते कि उसके घोड़े रेस में दौडऩे के काबिल भी नहीं बचे हैं। मध्यप्रदेश में जो मंत्री खूब बोलते थे उन्होंने शिवराज सरकार की किसान हितैषी तथा आम आदमी की योजनाओं के परिणाम पर कालिख पोत दी। सत्ता की नाक रहे मंत्री चुनाव हार गए और 15 साल की सरकार को सत्ता से बाहर होना पड़ा। 15 साल पहले देशभर में एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस के पतन का भी यही कारण है। मंत्री जमीनी सच्चाई से दूर रहते हैं, वातानुकूलित कमरों में सत्ता की चाशनी में लिप्त बड़बोले मंत्री अपनी सही स्थिति का आकलन ही नहीं कर पाते। मीडिया में कद इतना बढ़ा लेते हैं कि पार्टी उनका टिकट काटने का साहस नहीं करता और कभी-कभी कार्यकर्ताओं की मंशा को भी दरकिनार कर मंत्री चुनाव मैदान में उतारना पार्टी की मजबूरी हो जाता है। अतिआत्मविश्वास की वजह से पार्टी चुनाव परिणाम के बाद समझ पाती है जब तक बहुत देर हो जाती है। जबसे जनसंघ का और उसके बाद भारतीय जनता पार्टी का नया स्वरूप सामने आया है उसके कोर एजेंडे में धारा 370, समान नागरिक कानून और राम मंदिर जैसे सवाल रहे हैं। जब सारी जोखिम मोल लेकर नरेंद्र मोदी सरकार अपने कोर एजेंडे धारा 370 पर कदम उठा ले और उसके बाद हुए दो राज्यों के चुनाव में सत्ता में लौटने पर पसीना आ जाए तो यह सोचने वाली बात है।