हमारे संविधान की विशेषता

दुनिया का सबसे लंबा संविधान


भारत का संविधान दुनिया में सबसे बड़ा और विस्तृत है। जब इसे लागू किया गया था, तब इसमें 395 अनुच्छेद, 22 भाग और 8 अनुसूचियां थीं। इसमें कुल शब्दों की संख्या करीब 1,45,000 थी। फिलहाल इसमें प्रस्तावना के साथ 25 भाग, 12 अनुसूचियां और 448 अनुच्छेद हैं। संविधान लागू होने के करीब 70 साल बाद इसमें 108 संशोधन हो चुके हैं।

एक साथ लचीला और कठोर


ऐसा इसलिए क्योंकि संविधान के कुछ प्रावधानों को संसद में सामान्य बहुमत से संशोधित किया जा सकता है जबकि कुछ प्रावधानों में बदलाव के लिए संसद में दो-तिहाई बहुमत के साथ कम से कम आधे राज्यों के विधानमंडल की अनुमति भी जरूरी है।

संघीय स्वरूप


संविधान में भारत को 'राज्यों के संघ' के रूप में परिभाषित किया गया है। इसका मतलब है कि भारतीय संघ इसके घटकों के बीच किसी अनुबंध का नतीजा नहीं है और वे इससे बाहर नहीं निकल सकते।

मूल अधिकार और मूल कर्तव्य


संविधान में देश के नागरिकों के लिए मूल अधिकारों की विस्तृत व्याख्या (अनुच्छेद 12-35) की गई है, जिन्हें किसी भी कानून द्वारा छीना या कमजोर नहीं किया जा सकता। इसी तरह, अनुच्छेद 51ए में नागरिकों के 11 कर्तव्यों का प्रावधान है।  

धर्मनिरपेक्षता


शुरुआत में धर्मनिरपेक्षता शब्द संविधान का हिस्सा नहीं था। 42वें संशोधन द्वारा इसे संविधान की प्रस्तावना में जोड़ा गया।

स्वतंत्र न्यायपालिका


अनुच्छेद 76 में न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए विस्तृत प्रावधान किए गए हैं। इसका मकसद यह है कि शासन-व्यवस्था संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप हो। न्यायपालिका नागरिकों के मूल अधिकारों और अन्य अधिकारों के संरक्षक के रूप में भी काम करती है।

एकल नागरिकता


भारतीय संविधान ने हमें एकल नागरिकता दी है। अनुच्छेद 5-11 में प्रावधान है कि अलग-अलग राज्यों के निवासियों को अलग से नागरिकता नहीं लेनी होती। न ही किसी अन्य देश का नागरिक होते हुए भारत की नागरिकता हासिल की जा सकती है।

आपातकालीन उपबंध


आपातकालीन परिस्थितियों से निपटने के लिए संविधान में आपातकालीन अधिकारों का प्रावधान किया गया है। सैन्य विद्रोह, विदेशी आक्रमण और राज्यों में संवैधानिक संकट (अनुच्छेद 352-360) के हालात में राष्ट्रपति आपातकालीन अधिकारों का इस्तेमाल कर सकते हैं।