हिदू वर्ग में कौर, संविधान पीठ करेगी विचार

'हिंदू वर्ग में कौन आते हैं?' इस पर भी विचार करेगी सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ



 





       


    संविधान में बताए गए हिंदुओं के वर्ग में कौन आते हैं? क्या किसी धार्मिक वर्ग की अनिवार्य धार्मिक प्रथाओं को संविधान से सुरक्षा प्राप्त है? इस किस्म के प्रश्नों पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट की वृहद पीठ सबरीमाला और इसके साथ सामने आए अन्य धार्मिक मामलों पर अपना निर्णय देगी। 







देश के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने अपने फैसले में ऐसे नौ बिंदुओं को रखा, जिनकी वजह से इस मामले को वृहद पीठ को भेजा जा रहा है। अपने निर्णय में चीफ जस्टिस ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने ऐसी बहस को फिर से जीवित करने की कोशिश की है जिसमें, धर्म क्या है, धर्म के महत्वपूर्ण हिस्से कौन से हैं, धर्म के अविभाज्य हिस्से कौन से हैं, आदि प्रश्न शामिल हैं। 




कई विविधताओं से भरी भारतीय परिस्थितियों में किसी एक ही देवता को पूजने वाले लोगों के दो वर्गों की पूजा से जुड़ी प्रथाओं में विभिन्नता हो सकती है। इसके बावजूद इन वर्गों को अपनी-अपनी धार्मिक आस्था, अमल और विश्वास के स्वतंत्रता से पालन व प्रचार करने का अधिकार है। इस बात का महत्व नहीं है कि वे अलग धर्म के 


 



उनके द्वारा पालन की जा रही धार्मिक प्रधाएं नागरिक व्यवस्था, नैतिकता, स्वास्थ्य और संविधान के तीसरे भाग में दिए गए प्रावधानों के खिलाफ नहीं जाते, तो इनका पालन करने के लिए वे स्वतंत्र हैं। किसी मंदिर में पूजा करने का व्यक्तिगत अधिकार, उसी मंदिर के धार्मिक समूह के अपने मामलों को खुद चलाने के अधिकार से बढ़ कर नहीं हो सकता। 

दूसरे मामले जो सामने आए


चीफ जस्टिस ने कहा कि यह मामला महिलाओं के मंदिर में प्रवेश तक सीमित नहीं रहा है। मुस्लिम महिलाओं के दरगाह व मस्जिद में प्रवेश, गैर पारसी से विवाहित पारसी महिलाओं के अगियारी के पवित्र अग्नि स्थल में प्रवेश, और बोहरा मुस्लिम महिलाओं के जनन अंग भग्न जैसी प्रथा के मामले भी साथ में उठे हैं। अब समय आ गया है कि अदालत अपनी शक्तियों के अनुसार एक न्यायिक नीति बनाए, जिससे पूरा न्याय दिया जा सके। इसके लिए कम से कम सात जजों की वृहद सांविधानिक पीठ का गठन किया जाए। 


ये नौ बिंदु जिन पर वृहद पीठ करेगी विचार




  • अनुच्छेद 25 और 26 के तहत परस्पर धार्मिक स्वतंत्रता तय की जाए।

  • धार्मिक स्वतंत्रता के तहत प्रथाओं के पालन से नागरिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के मायने क्या हैं?

  • नैतिकता और सांविधानिक नैतिकता को संविधान में परिभाषित नहीं किया गया है, इन्हें व्यक्तिपरक बनाने की जरूरत।

  • कोर्ट किस सीमा तक किसी धर्म या उसके भाग की किसी प्रथा के बारे में जांच कर सकता है, या इन्हें पूरी तरह से धार्मिक प्रमुखों को तय करने देना चाहिए?

  • संविधान के अनुच्छेद 25(2)(बी) के अनुसार जब 'हिंदू धर्म का भाग' शब्द कहे जाते हैं तो इनके मायने क्या हैं?

  • क्या किसी धर्म के वर्ग की अनिवार्य धार्मिक प्रथाओं को संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत सुरक्षा मिली हुई है? 

  • ऐसी जनहित याचिकाओं को किस सीमा तक अनुमति देनी चाहिए, जिनमें धार्मिक वर्गों की प्रथाओं को न्यायिक मान्यता के लिए सवाल किए जाएं और जिन्हें ऐसे व्यक्ति ने दायर किया हो जो उस वर्ग से ताल्लुक न रखता हो।

  • धार्मिक प्रथाएं कौन सी हैं और अंधविश्वास किसे माना जाए?

  • क्या केरल में हिंदू धर्मस्थल नियमावली के तहत मंदिरों का प्रशासन होना चाहिए?