अयोध्या फैसला:
बूटा सिंह के सुझाव पर पक्षकार बनने कोर्ट पहुंचे थे रामलला
नईदिल्ली ।
सुप्रीम कोर्ट की सांविधानिक पीठ ने अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर बनाने के लिए जिन रामलला विराजमान के पक्ष में फैसला सुनाया, उन्हें पक्षकार बनाने का सुझाव किसी भाजपा या विश्व हिंदू परिषद के नेता का नहीं था। यह सुझाव तत्कालीन गृहमंत्री बूटा सिंह ने दिया था।

दरअसल 1989 से पहले बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि को लेकर तीन मामले अदालत के सामने थे। 1951 में गोपाल सिंह विशारद ने याचिका दायर कर रामलला की पूजा करने का अधिकार मांगा था। जबकि 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने मंदिर के प्रबंधन के अधिकार उन्हें दिए जाने की मांग की थी। इन दोनों में से किसी ने जन्मभूमि पर अधिकार की बात नहीं की थी। केवल 1961 में सुन्नी वक्फ बोर्ड की याचिका में मस्जिद की भूमि के स्वामित्व की मांग की गई थी।
1988-89 में जब राम जन्मभूमि आंदोलन अपने चरम पर था, उस दौरान तत्कालीन गृहमंत्री बूटा सिंह ने विहिप नेताओं को समझाया कि आंदोलन से मंदिर नहीं बन पाएगा। वह या तो संसद द्वारा कानून बनाने से होगा या फिर अदालत से मुकदमा जीतने से। उनका कहना था चूंकि अदालत में किसी ने भी मंदिर की भूमि के स्वामित्व की मांग नहीं की है, इसलिए अदालत से जब भी फैसला होगा, वह सुन्नी वक्फ बोर्ड के हक में ही होगा।
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने शनिवार को जन्मस्थान को तो विधिक पक्ष नहीं माना, लेकिन रामलला विराजमान को अपने जन्म स्थान का विधिक स्वामी करार दिया और उनके जन्मस्थान पर मंदिर बनाने के आदेश दिए।
सुप्रीम कोर्ट की सांविधानिक पीठ ने अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर बनाने के लिए जिन रामलला विराजमान के पक्ष में फैसला सुनाया, उन्हें पक्षकार बनाने का सुझाव किसी भाजपा या विश्व हिंदू परिषद के नेता का नहीं था। यह सुझाव तत्कालीन गृहमंत्री बूटा सिंह ने दिया था।

दरअसल 1989 से पहले बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि को लेकर तीन मामले अदालत के सामने थे। 1951 में गोपाल सिंह विशारद ने याचिका दायर कर रामलला की पूजा करने का अधिकार मांगा था। जबकि 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने मंदिर के प्रबंधन के अधिकार उन्हें दिए जाने की मांग की थी। इन दोनों में से किसी ने जन्मभूमि पर अधिकार की बात नहीं की थी। केवल 1961 में सुन्नी वक्फ बोर्ड की याचिका में मस्जिद की भूमि के स्वामित्व की मांग की गई थी।
1988-89 में जब राम जन्मभूमि आंदोलन अपने चरम पर था, उस दौरान तत्कालीन गृहमंत्री बूटा सिंह ने विहिप नेताओं को समझाया कि आंदोलन से मंदिर नहीं बन पाएगा। वह या तो संसद द्वारा कानून बनाने से होगा या फिर अदालत से मुकदमा जीतने से। उनका कहना था चूंकि अदालत में किसी ने भी मंदिर की भूमि के स्वामित्व की मांग नहीं की है, इसलिए अदालत से जब भी फैसला होगा, वह सुन्नी वक्फ बोर्ड के हक में ही होगा।
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने शनिवार को जन्मस्थान को तो विधिक पक्ष नहीं माना, लेकिन रामलला विराजमान को अपने जन्म स्थान का विधिक स्वामी करार दिया और उनके जन्मस्थान पर मंदिर बनाने के आदेश दिए।