कहानी एक बेटी की

कहानी


बेटी और उसकी हिम्मत


      कथा लेखक- ओमप्रकाश चौधरी


आज कई दिनों बाद वह आई आते ही मेरे पैर छुए प्रणाम ताउजी| मैंने कहा तेरी आवाज इतनी धीमी क्यों हो गई ससुराल जाकर ।मेरे इस सवाल पर बिना रुके उसने जवाब दिया हाँ मेरी आवाज दब गई है वहां जाकर। अब चकित  होने की बारी मेरी थी। मैंने कहा फेस बुक पर तो बड़ी हंसती खेलती फोटो दिखती है तेरीऔर तेरे पति की । मेरे सामने बैठते है उसका दुखी स्वर सुनाई दिया सब दिखावा था वह तो। मैंने उसकी और देखा तो वह बोली सच कह रही हूँ इतना कहते हुए उसकी आँखे भर आई। मैंने उसे पीने को पानी देते हुए कहा साल भर हुआ तेरी शादी को पर तूने या तेरे पापा ने कभी बताया नही। क्या बताती अब तक यही सोचकर कोशिश करती रही कि थोड़े दिन में सब ठीक हो जायेगा । पर हुआ कुछ नही, ताऊजी उन्हें तो बहु नही केवल पैसे कमाने की मशीन और घर में काम करने वाली बाई चाहिए थी और साल भर से मैं वही थी वहां ।और दामाद वे क्या कहते है । इतना सुनते ही उसके मुंह का स्वाद कडुआ हो गया शायद। एकदम वितृष्णा से भरकर बोली आपका  दामाद और मेरा पति। यदि पति ऐसा होता है तो फिर तो शादी ही न करे कोई लड़की। उसे तो जैसे मुझसे कोई मतलब ही नही । सुबह नोकरी पर जाये तो उसका टिफन बना दो रात्रि को वापस आये तो खाना खाया और फिर वह और उसका मोबाईल और टीवी । बीवी मर रही है या जी रही है उसे कोई  मतलब नही। तुम्हारे  सास ससुर कुछ नही कहते । ससुरजी का होना न होना बराबर है घर में कमाने और कमाई सास के हाथ में रखने के सिवा उनकी कोई भूमिका नही। और सास उन्हें तो सारी गलती मेरी ही दिखती है उन्हें तो अपने शौक पूरे करने से फुर्सत नही। मैंने कहा तू पढ़ी लिखी है एलएलबी किया है फिर तू कोई काम क्यों नही करती । वह बोली ताऊजी आपकी सलाह से लॉ कर लिया तभी तो जीने कि हिम्मत मिली हालात से लड़ रही हूँ वर्ना कबकी जिंदगी से हार गई होती। रही काम की बात तो  वह भी शुरू किया एक वकील के पास जाने लगी थी । पर उसके बाद  मेरी जिंदगी में मेरे लिए तो कोई वक्त ही नही रहा सुबह 5 बजे से रात 11 बजे तक केवल काम और काम। पर इतना सब करके भी घर के लोगों को मुझसे कोई मतलब नही। हद तो तब हो गई जब जैसे ही काम करते हुए महीना बीता मेरी सास ने कहा ला पैसे दे मैंने कहा कौन से पैसे ? वो बोली महीने भर से वकील के पास जा रही है उसने पगार नही दी। मैंने कहा वकालत में समय लगता है पैसा कमाने में और मैं अभी काम सीख रही हूँ। सास का जवाब था मुझे कोई मतलब  नही पैसे तो तुझे देने पड़ेंगे वकील दे या तेरा बाप वरना ठीक नही होगा। मेरे सब्र की हद हो चुकी थी। ससुराल केवल जहां नोकरानी से ज्यादा में कुछ नही थी। पति जो केवल नाम का था। सास ससुर से कुछ कहो तो कोई सुनता नही। एक ही जवाब अंकल आएंगे तब बात करेंगे। मैंने कहा अब ये अंकल कौन है ? उसका जवाब था है एक दूर के रिश्तेदार मेरी ससुराल में वे ही कर्ता धर्ता है। अब ऐसी ससुराल में मैं करती भी क्या ? वकील के यहां जाने के बहाने निकली और यहाँ आ गई। दो महीने हो गए आये को ससुराल वालो ने कोई खोज खबर ली नही । उन्ही अंकल का फोन एक दो बार आया । मैंने दो टूक कह दिया आप क्यों हमारे बीच में पड़ते हो मैं आपसे कोई बात नही करूंगी।अब शिकायत करने की बारी मेरी थी दो महीने में आज आ रही है मुझे बताने और तेरे पापा उनसे तो आज ही बात करूँगा। मुझे बड़ा भाई कहते है और समझा तुम बाप बेटी ने एक दम पराया। उसकी आँखों में आंसू भर आये बोली पापा से कुछ मत कहना आपको बहुत मानते है पर समझ नही पा रहे है कि आपको बताएं कैसे ? मैंने कहा चल छोड़ ये सब अब तू करेगी क्या ? वह बोली करूंगी क्या ? वापस जबलपुर जाउंगी अलग रहने की व्यवस्था कर अपने कॅरियर को सवांरुगी और ससुराल के  रिशतेदारों को कुरेदकर पति परमेश्वर को रास्ते पर लाने की कोशिश करूंगी। उसके स्वर में व्यंग और आत्म विश्वास दोनों थे।वह उठते हुए बोली चलती हूँ फिर आउंगी। मैं उसे जाते हुए देखता रहा और सोचता रहा कि केवल एक मंगलसूत्र इन बेटीयों को कितना समझदार और जिम्मेदार बना देता है। कल की अल्लहड़ बेटी जो मायके में तितली की तरह उड़ती फिरती है ससुराल में जाकर कितना कुछ सहती रहती है। क्या उसी बंधी बधाई लीक के नाम पर कि बेटी  डोली में बैठकर ससुराल जाती है और अर्थी में....। मैं अचकचाकर उठ खड़ा हुआ अब ऐसा नही होगा अभी जाकर उसके पापा से बात करता हूँ जो मुझे अपना बड़ा भाई मानता है।